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uttarkashi news उत्तरकाशी का प्राचीन कुटेटी देवी मंदिर एक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल

संवाददाता ठाकुर सुरेंद्र पाल सिंह (उत्तरकाशी)

उत्तरकाशी: कुटेटी देवी मंदिर एक प्राचीन और धार्मिक महत्व का स्थल है यह मंदिर भागीरथी नदी के तट पर हर पर्वत पहाड़ी पर उत्तरकाशी से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

कुटेटी देवी को देवी दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है मंदिर के पास ही सुप्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर भी स्थित है इस मंदिर का पूरा नाम आदि श्री कुटेटी देवी पौराणिक सिद्ध पीठ मंदिर है

नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजन और आयोजन होते हैं. इस दौरान भक्तगण दूर-दूर से यहां आकर माता की आराधना करते हैं

मां कुटेटी मंदिर का नव निर्माण कार्य पूरा होने के कारण प्राण प्रतिष्ठा पूजन कार्य संपन्न हुआ प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर भक्तों की कुटेटी मंदिर में भारी भीड़ रही विशाल भंडारे में माता का भोग ग्रहण कर भक्तों ने पुण्य लाभ अर्जित किया

माता भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें आशीर्वाद देती हैं. भक्तगण दूर-दूर से यहां आकर माता की आराधना करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं.

 

माता कुटेटी देवी मंदिर ने अपनी धार्मिक महत्वकांक्षा और भक्तों के प्रति अपनी कृपा के कारण उत्तरकाशी में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है. यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक है. यहां आने वाले यात्री अपनी आस्था और श्रद्धा को नवीनीकरते हैं और अपने जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता लेकर वापस जाते हैं.

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इस मंदिर की कहानी और इतिहास ने इसे एक अद्वितीय और अनूठी धार्मिक स्थल बना दिया है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण यात्रा स्थल है. यह मंदिर न केवल उत्तराखंड के लोगों के लिए, बल्कि पूरे भारत और विदेशी यात्रियों के लिए भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है. यहां आने वाले हर भक्त को माता की कृपा और आशीर्वाद की अनुभूति होती है. इसलिए, यह मंदिर न केवल एक पूजा स्थल ही नहीं है, बल्कि यह एक जीवन दर्शन, एक आस्था का प्रतीक, और एक आत्मिक शक्ति का स्रोत है. यहां आने वाले हर भक्त को अपने आत्मिक जीवन को नई दिशा और उद्देश्य मिलता है

पं सन्तोष नौटियाल
पुजारी माँ राजराजेश्वरी कुटेटी देवी प्रचीन मन्दिर उत्तरकाशी का कहना है कि एक बार की बात है राजस्थान के राजा गंगोत्री की यात्रा पर आए थे. काशी विश्वनाथ के दर्शन करते समय उनका पैसों से भरा बैग काशी विश्वनाथ मंदिर में छूट गया. गंगोत्री यात्रा पर निकले तो उन्हें ध्यान आया कि हमारा पैसों से भरा बैग वहीं विश्वनाथ मंदिर में छूट गया. जब वह वापस काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे तो उन्हें उनका पैसों से भरा बैग सुरक्षित मिला, जिससे प्रसन्न होकर राजा ने सबसे बड़ा दान करने का मन बनाया.

 

हमारे हिंदू संस्कृति में सबसे बड़ा दान कन्या का दान कहा गया है, तो राजा ने यहां पर स्थानीय युवक से अपनी कन्या का विवाह कराया. भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान कोटा यहां से बहुत दूर था. कोटा में राजा की कन्या की जो इष्ट देवी थी राजराजेश्वरी, उसे कन्या हमेशा याद करती रहती थी. तब मां राजराजेश्वरी ने कन्या को स्वप्न में बताया कि मैं भी वहां पर प्रकट होना चाहती हूं.

 

तब माता ने काशी विश्वनाथ मन्दिर के ठीक सामने ऐरांसु गढ पर्वत पर तीन (पिंड) पत्थर की मूर्ति के रूप में माता प्रकट हुई, जो आज भी यहां पर स्थित है. कोटा नमक स्थान से माता के आने पर माता का स्थानीय नाम कुटेटी नाम से प्रसिद्ध हुई. तब से माता समस्त क्षेत्रवासियों की कुलदेवी के रूप में यहां पर प्रसिद्ध है तथा सभी क्षेत्रवासियों की मनोकामना माता द्वारा पूर्ण की जाती है।

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