संवाददाता ठाकुर सुरेंद्र पाल सिंह (उत्तरकाशी)
उत्तराखंड, हिमालयी राज्य, अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहां की जैव विविधता न केवल उसके वनस्पति और जीव जगत को बढ़ावा देती है, बल्कि यहां की संस्कृति और परंपराओं को भी प्रभावित करती है। उत्तराखंड के लोग वनस्पतियों का उपयोग न केवल औषधीय प्रयोजनों के लिए करते हैं, बल्कि धार्मिक समारोहों और अनुष्ठानों के लिए भी करते हैं। इसका एक उदाहरण है केदारपाती या नायरा, एक सुगंधित झाड़ी जिसका उपयोग धूप के रूप में किया जाता है।
केदारपाती या नायरा का धार्मिक महत्व
उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली केदारपाती या नायरा एक सुगंधित झाड़ी है। इसका उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा धार्मिक समारोहों और स्थानीय देवताओं को जागृत करने के लिए धूप के रूप में व्यापक रूप से किया जाता है। पहले उपयोग के लिए कुछ टहनियाँ काट ली जाती थीं। लेकिन, हर्बल धूप के रूप में इसकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण, कई बार पूरे पौधे को जड़ से उखाड़ दिया जाता है। इस प्रथा ने पौधे को संकटग्रस्त पौधे की श्रेणी में ला दिया है।
उत्तराखंड की जैव विविधता और उसका संरक्षण
उत्तराखंड अपनी जैव विविधता से जितना समृद्ध है, उतना ही हिमालय की ऊपरी पहुंच में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों के उपयोग से जुड़ी पौराणिक कहानियों का भी भंडार है। ऐसे अनेक उदाहरण लिए जा सकते हैं जहां समुदाय जड़ी- बृटियों, झाड़ियों और पेड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के अलावा धार्मिक समारोहों के लिए भी करता है। हालांकि, कटाई और उनके उपयोग की सामुदायिक प्रथाएं अत्यधिक दोहन को भी रोकती हैं।
पिछले कुछ समय में उत्तराखंड ने हर्बल राज्य के रूप में भी पहचान हासिल कर ली है। विभिन्न योजनाएं और सरकार के नेतृत्व वाले कार्यक्रम समुदाय को आजीविका कमाने के लिए औषधीय पौधे उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन साथ ही उनके संरक्षण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इसी कारण से, अल्पाइन क्षेत्रों में पाई जाने वाली कुछ लुप्तप्राय प्रजातियों की कटाई और बिक्री प्रतिबंधित है।
यह भी पढें:uttarkashi news मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भव्य स्वागत, उत्तरकाशी में जनसभा को संबोधित किया
धार्मिक समारोहों में वनस्पतियों का अनूठा उपयोग
उत्तराखंड के मंदिर, जैसे केदारनाथ, बद्रीनाथ और तुंगनाथ के मंदिर में ब्रहम कमल, सितंबर-अक्टूबर में, त्योहार के दौरान ‘नंदा अष्टमी के दिन चढ़ाया जाता है। इसके अलावा, अन्य वनस्पतियों का भी धार्मिक समारोहों में उपयोग किया जाता है।
उत्तराखंड की वनस्पतियों का धार्मिक और औषधीय महत्व
उत्तराखंड की वनस्पतियों का उपयोग न केवल धार्मिक समारोहों में होता है, बल्कि ये औषधीय गुणों के लिए भी जानी जाती हैं। उदाहरण स्वरूप, ब्रह्म कमल, जो कि एक अत्यंत पवित्र पौधा माना जाता है, उसका उपयोग धार्मिक समारोहों में होता है, साथ ही इसके औषधीय गुणों के कारण इसे आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी उपयोग किया जाता है।
वनस्पतियों का संरक्षण और समुदाय की भूमिका
उत्तराखंड के समुदायों ने वनस्पतियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने वनस्पतियों की कटाई और उनके उपयोग की सामुदायिक प्रथाएं विकसित की हैं, जो अत्यधिक दोहन को रोकती हैं। उत्तराखंड के समुदायों ने वनस्पतियों के संरक्षण के लिए अनेक पहलें की हैं, जिसमें वनस्पतियों की अधिकतम उपयोगिता और उनके संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास शामिल है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड की वनस्पतियों का धार्मिक, औषधीय और सांस्कृतिक महत्व अनुपम है। इन वनस्पतियों के संरक्षण और सही उपयोग के लिए समुदायों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड के लोगों की इन वनस्पतियों से जुड़ी परंपराएं और उनका संरक्षण करने के लिए किए गए प्रयास उनकी अनमोल धरोहर को दर्शाते हैं।