संवाददाता ठाकुर सुरेंद्र पाल सिंह (उत्तरकाशी)
उत्तरकाशी: पंचकोसी वारुणी यात्रा, उत्तरकाशी की एक प्रमुख धार्मिक यात्रा है, जिसे हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को आयोजित किया जाता है। इस यात्रा में श्रद्धालुओं को 15 किमी की पैदल यात्रा करनी होती है, जिसमें वे वरुणावत पर्वत की परिक्रमा करते हैं। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।
यात्रा की शुरुआत ब्रह्ममुहूर्त में होती है, जब श्रद्धालु वारुणी यात्रा पर निकलते हैं। यात्रा के पथ पर बड़ेथी संगम स्थित वरुणेश्वर, बसूंगा में अखंडेश्वर, साल्ड में जगरनाथ और अष्टभुजा दुर्गा, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर और व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखरेश्वर तथा विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नर्वदेश्वर मंदिर में जलाभिषेक और पूजा-अर्चना का सिलसिला शाम तक चलता रहता है।
वरुणावत से उतरकर श्रद्धालुओं ने गंगोरी में असी गंगा और भागीरथी के संगम पर स्नान के बाद नगर के विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना एवं जलाभिषेक के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर यात्रा संपन्न की। वारुणी यात्रा के धार्मिक महत्व और इसमें उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए जल संस्थान ने वरुणावत शीर्ष पर महीडांडा के निकट टैंकर से पेयजल की व्यवस्था की।
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जिला चिकित्सालय की ओर से पैदल यात्रा पथ के दोनों छोर पर एंबुलेंस तैनात कर यात्रियों को स्वास्थ्य सेवाएं दी गईं। आईटीबीपी की 35वीं वाहनी महिडाडा के जवानों ने भी शिखरेश्वर महादेव मंदिर के पास व्यवस्थाएं संभालीं। बड़ेथी और गंगोरी संगम पर पुलिस की व्यवस्था भी चाक चौबंद रही। यात्रा पथ पर पड़ने वाले गांवों में तो ग्रामीणों ने पदयात्रियों की आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी।
स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा वाली वारुणी यात्रा सच्चे मन से करने पर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और हजारों तीर्थों की यात्रा का पुण्य लाभ मिलता है। वरुणावत पर्वत को देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। पुराणों में यहां भगवान परशुराम एवं महर्षि वेदव्यास द्वारा तपस्या किए जाने का उल्लेख भी है।
वरुणा नदी में स्नान के साथ शुरू होने वाली यात्रा वरुणावत पर्वत के ऊपर से गुजरते हुए अस्सी गंगा और भागीरथी के संगम पर पूजा-अर्चना के साथ संपन्न होती है।
इस पवित्र यात्रा के माध्यम से, उत्तरकाशी के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवंत रखते हैं। यह यात्रा उन्हें अपने पूर्वजों की धार्मिक आस्था और अनुष्ठानों को समझने और उन्हें आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान करती है। यह यात्रा उत्तराखण्ड की युवा पीढ़ी को भी अपनी जड़ों से जोड़े रखने का एक माध्यम है।
राष्ट्रीय हिंदू संघ की प्रदेश अध्यक्षा सीमा गौड़ ने कहा है कि उत्तरकाशी की पंचकोषी यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सामाजिक उत्सव भी है, जहाँ लोग विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों से आकर एक साथ मिलते हैं। यह यात्रा उत्तराखण्ड के लोगों के बीच एकता और सामंजस्य की भावना को मजबूत करती है, और उत्तराखण्ड की धरोहर को संजोए रखने और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक जीवंत माध्यम है।
यह यात्रा उत्तराखण्ड के लोगों के लिए एक गर्व का विषय है, जो उन्हें अपनी संस्कृति और धरोहर के प्रति गर्व महसूस कराता है।
यात्रा का समापन गंगोरी में अस्सी गंगा और भागीरथी के संगम पर होता है, जहां आश्रम के ट्रस्टी संदीप कुमार कौशिक एवं उनकी टीम ने सभी श्रद्धालुओं के लिए जलपान की व्यवस्था कर रखी थी गंगा स्नान के बाद सभी श्रद्धालुओं ने मंदिर में जाकर माता के दर्शन कर जलपान ग्रहण किया। यह स्थल उत्तराखण्ड के लोगों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है।
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