देव कृष्ण थपलियाल
चार धाम यात्रा:
राज्य की प्रमुख चारधाम यात्राओं का आगाज विधिवत शुरू हो गया है। अप्रैल माह के शनिवार 22 तारीख को सबसे पहले गंगोत्री-यमुनोत्री धामों के कपाट खुले। इस दिन पहले सुबह 8ः30 गंगा की डोली भैरवगढ से ’गंगोत्री धाम’ पहुॅची तथा दोपहर 12ः35 बजे स्थानीय रीति-रिवाज और वैदिक मंत्रोचार के साथ ’गंगोत्री धाम’ के कपाट आम श्रद्वालुओं के लिए खोल दिए गये। यमुना की डोली अपनें शीतकालीन प्रवास स्थल खरसाली से 9ः00 बजे यमुनोत्री धाम लिए रवाना हुई तथा 12ः48 अभिजीत मुहूर्त में यमुनोत्री मॉ के कपाट खोले दिए गये ।
हिमालय में स्थित 11 वें ज्योतिलिंग भगवान केदारनाथ का दरबार 25 अप्रैल को सुबह 6ः20 पर लगभग 18,500 भक्तों की उपस्थिति में खुल गया । सर्द मौसम की ठंडी हवाओं को पीछे छोड तीर्थयात्रियों नें अपनें ईष्ट के दर्शन पाकर भवविह्लता व प्रसन्नता का आंनंद लिया। राज्य सरकार नें तीर्थयात्रियों के स्वागत में हैलीकाफ्टर से फूलों की वर्षा की, तथा स्वयं बाबा के दरबार केदारधाम को 45 कुंन्तल फूलों से सजाया गया था। 27 अपै्रेल को करीब पंद्रह हजार श्रद्वालुओं की उपस्थिति में सूबह 7ः10 मिनट पर श्री बदरीनाथ धाम के भी कपाट खोल दिए गए। बदरी विशाल के गगन भेदी के साथ स्थानीय बामणी और माणा की महिलाओं नें पारंम्परिक वेश-भूषा में स्थानीय झूमैलो नृत्य किया, सेना के गढवाल स्काउट, आईटीबीपी के जवानों के बैंड से भक्ति स्वर लहरियों नें वातावरण को भक्तिमय बनानें में कोई कमीं नहीं छोडी। सिंहद्वार पर बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के वेद-वेदांत के आचार्यों व छात्रों नें वेद पाठ और विष्णु सहस्रनाम का सस्वर पाठ किया। वहीं राज्य सरकार के निर्देश पर श्रद्वालुओं पर हैलीकाफ्टर से पुष्प वर्षा की गईं जिससे यात्रीगण खासे प्रसन्न दिखे।
चारों धामों के कपाट विधिवत खुलनें के बाद तीर्थयात्रियों व श्रृद्वालुओं की आवाजाही लगातार बढ रही है। इससे पहले शासन-प्रशासन यात्रा इंतजामों को लेकर काफी संजीदा दिखा, राज्य के मुखिया श्री पुष्कर सिंह धामी, पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज, मुख्य सचिव श्री सुखवीर सिंह संधु तथा गढवाल आयुक्त श्री सुशील कुमार इन इंतजामों की लगातार समीक्षा बैठक कर रहें हैं।
विगत दो सालों के ‘कोरोना महामारी‘ व 2013 की आपदा का कुहॉसा अभी छटा नहीं है, चार धाम यात्रा पर इसका असर साफ दिख रहा है, बदलते दौर में अनुमान था कि यात्रा बढेगी, और यात्रा में शिरकत करनें वाले यात्रियों की संख्या में भी खासा इजाफा होगा, परन्तु ऐसा नही हुआ। उधर सरकार का भी एक करोड यात्रियों को लाने का संकल्प था, परन्तु इसके विपरीत हर साल यह ऑकडा 18 से 20 लाख तक सिमट जाता है। उत्तराखण्ड पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की ’विशेष कृपा’ के बावजूद ये स्थिति है ? अपनें केदारबाबा पर अटूट आस्था के कारण वे बराबर बद्रीनाथ-केदारनाथ खासकर केदारबाबा के पास आते रहते हैं जिसकी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पूरी तरह कवर करतीं है।
चार धाम के ’’महत्व’’ को सरकार खुब समझती है, परन्तु उसका वास्तविक लाभ लेंनें में अभी काफी पीछे है। यात्रा से करीब 60 से अधिक छोटे-बडे शहर सीधे तौर पर कारोबार से जुडते है। यात्रा से कारोबार मे ं80 फीसदी की बडी वृद्वि होंनें अनुमान है। होटल, ट्रेवल, कारोबार के अलावा कंबल, गर्म कपडों, स्थानीय उत्पादों के साथ पूजा-पाठ की सामग्री, असमय बारीश से बचनें के लिए बरसाती, और आस्था के पथ पर पैदल चलनें के लिए लाठी के साथ ही जरूरी सामान बेचनें वालों के लिए चार धाम यात्रा उम्मीदों को लेकर आतीं हैं। विगत यात्राओं की तरह इस यात्रा में भी बेहतर कारोबार की उम्मीद की जा रही है, यात्रा के प्रमुख पडावों पर बाजार सज गये हैं। रूद्रप्रयाग जिले में फड कारोबार लाखों में होता है। वैसे भी सामान्य दिनों तुलना में यात्रा रूट के सभी बाजार व दुकानें 30 से 50 फीसदी अधिक कारोबार करते हैं। गुप्तकाशी, फाटा, सीतापूर, सोंनप्रयाग, गौरीकूुड और स्वयं केदारनाथ में यात्राकाल कारोबार के लिहाज से गुलजार रहता है। स्थानीय फल, चाट, नींबू, खीरा, आदि भी नये कारोबार के रूप में तेजी से बढ रहे हैं। उद्यान एवं खाद्य प्रंसस्करण विभाग की ओर से चार धाम यात्रा के मुख्य पडाव श्रीनगर के परम्परागत उत्पादों का विपणन शुरू कर दिया गया है। प्रदेशभर में 12 विपणन केंद्र खोले जा रहें हैं। जिससे लगभग पूरा प्रदेश जुडेगा खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की जनता के दिन भी बहुरेंगें । यात्रा रूटों पर युवाओं नें अनेक आधुनिक सुविधाओं से युक्त होटल, रेस्टोंरेंट और दूसरे व्यावसायिक प्रतिष्ठान खोले हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के साथ स्थानीय युवाओं को रोजगार से जुडनें के अनेक सुअवसर प्राप्त हो रहे हैं। युवाओं की इस खास व्यावसायिक रूचि के कारण सरकार ओर प्रदेश को अर्थिक समृद्वि के साथ-साथ बेरोजगारी का दंश भी समाप्त हो रहा है। इसलिए चार धाम यात्रा के महत्व को समझते हुए यात्रियों को जो जरूरी सुविधाऐं मिलनीं चाहिए थीं उसका नितांत अभाव है।
अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी कई दावे किए जाते हैं, लेकिन पहाड में वैसे ही पहले से न अच्छे हॉस्पिटल हैं, नही डॉक्टर फिर यात्राकाल में तो इसका अभाव साफ खटकता है। चारों धामों की स्थिति विषम भौगोलिक होंनें के कारण वहॉ कई स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियॉ होंना स्वाभाविक है। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में प्रतिदिन एक-दो लोगों को जान गवॉनी पडती है। केदारनाथ धाम में इस बार स्थाई भवन न मिल पानें के कारण सिक्स सिग्मा हाई एल्टीट्यूड मेडिकल सर्विसेज भी उपलब्ध नहीं हो पायेगी जिससे और परेशानी बढ जायेगी।
चारों धामों में रूकनें की सीमित व्यवस्था को देखते हुए यात्रियों की एक लिमिट अथवा एक संख्या का निर्धारण किया गया था, जिससे यात्रियों को आराम से दर्शन, पूजा-पाठ व रात्री विश्राम मिल सके, खासकर केदारनाथ व यमंुनोत्री में संसाधन अत्यन्त सीमित हैं, बारिश और बर्फवारी को देखते हुए ठंड से यात्रियों के साथ अनहोंनी होंनी लाजिमी है। बद्रीनाथ में जोशीमठ, पीपलकोटी, औली में कुल 18,000 बैड की क्षमता है, लिचौंली से केदारनाथ तक 8-10 हजार लोगों के लिए आराम करनें सुविधा मिल सकेगी, जबकि आज हालात ये हैं कि 18 से 20,000 यात्रियों की संख्या प्रतिदिन के हिसाब से दर्शन कर रही है, जिससे यात्री न तो ठीक ढग से दर्शन कर पा रहे हैं, न तो रा़त्री विश्राम की समुचित व्यवस्था हो पा रही है, यात्रा शुरू होते ही सरकार के दावे और वादे दोेनों झूठे साबित हो रहे हैं, यात्रियों के अंसन्तोष और अव्यवस्था से देश-विदेश से आनें वाले लोंगो पर भी इसका अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। यात्रियों को उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से एक निश्चित संख्या में ही भेजा जाना चाहिए ।
’ऑल वेदर रोड’ का काम लगभग पूरा हो चुका है, ये अच्छी बात है, कि पहाड में अब पहले जैसी दूरूह व मुश्किल भरी सडकें नहीं हैं, सडकों के विस्तारीकरण से यात्रा काफी आसान हुई है।, परन्तु आम तौर पर पहाडी इलाकों में बरसात की अनियमित स्थिति से सडकों का खराब होना आम बात है, चट्टानों और पहाडों को तोड-खोदकर बनाई सडकों के टूटनें/खिसकनें ये आशंका होती हैं। सरकार नें इस बार, ऐसी स्थिति से निपटनें के लिए प्रत्येक जिलाधिकारी के खाते में दो करोड रूपये का बजट दिया है, मुश्किल वक्त के समय स्थिति से निपटनें में सहयोग करेगा । ’ऑल वेदर रोड’ अभी कई जगहों पर निर्माणाधीन है, जिस कारण ट्रैफिक जाम व दूसरी स्थितियों का सामना करना पडता है। कई स्थानों पर अभी भी ’डेंजर जोंन’ बनें हुए हैं, केदारनाथ हाइवे पर नैल, खाट, फाटा, व्यूूंग, बडासू और मुनकटिया आदि स्थानों पर डेंजर जोंन है, केदारनाथ के लिए ’ऑल वेदर रोड’ में कूुड से बाईपास का निर्माण भी अभी पूरा नहीं हुआ, कर्णप्रयाग मे बद्रीनाथ हाईवे का करीब 500 मी0 से अधिक हिस्से का चौडीकरण का काम रूका हुआ है। गॉधीनगर के पास बीते कई वर्षोंं से सडक धॅस गई थीं। यहॉ एक तरफ सडक तो ठीक कर दीं गईं, लेकिन दूसरी ओंर सडक के संकरी होंनें के कारण जाम की स्थिति लगातार बनीं रहती है। हरिद्वार-़ऋषिकेश में चार धाम यात्रा का स्वागत ट्रैफिक जाम के साथ होता है। इन दोंनों प्रमुख शहरों के बीच 12 स्थानों पर ऐसे प्वाइंट हैं, जहॉ पर जाम लगना निश्चित है। हरिद्वार से नेपाली फार्म तक पहुॅचनें के बाद ऋषिकेश को पार कर तपोवन तक की दूरी तय करना बडी चुनौती से कम नहीं है। यमुनोत्री हाईवे पर पालीगाढ से जानकीचट्टी तक 27 किमी के दायरे में हाईवे काफी बेहद संकरा है, वही सडक की स्थिति भी दयनीय है। जगह-जगह गडढे होंनें के साथ ही सडक के किनारे मिट्टी के ढेर लगे हैं। केदारनाथ हाईवे पर ’ऑल वेदर’ का काम अभी गुप्तकाशी से आगे सोंनप्रयाग ओर गौरीकुंड तक पूरा नहीं हो पाया, खाट गॉव, मैखण्ड, फाटा, सीतापूर, सोनप्रयाग, गौरीकूण्ड, में तंग सडक जाम की बडी वजह बन सकती है। सडकों पर जाम लगनें की स्थिति के पीछे ’पार्किंग व्यवस्था’ का अभाव है, यात्रा रूट से लगे शहर पहले ही ट्रैफिक का दबाव झेल रहे हैं, फिर यात्रा शुरू होंते ही दिक्कतें और बढ जातीं हैं।
हिमालय क्षेत्र से निकलनें वाली पवित्र नदियों और समृद्व नैसर्गिक शौंदर्य को बनाए रखना बडा चुनौती का काम है, जिस पर सरकार का ध्यान नहीं जाता है। गंगा ओर उसकी सहायक नदियों में साफ करनें के नाम पर ’नमामीं गंगें’ जैसी अनेक योजनाओं पर करोडों रूपये रोज बहाए जा रहे हैं। तीर्थयात्रियों द्वारा आयातित कूडे का योगदान जुडनें से नदियॉ और यहॉ की धरती और दूषित होती चलीं जा रही है, गंगा अपनें उदगम स्थल से दूषित की जा रही है। अपनें शीतकालीन प्रवास के बाद मॉ गंगा की डोली जब मुखवा गॉव से गंगोत्री धाम के लिए प्रस्थान करती है, तो मुखवा और आसपास के गॉवों के निवासी गंगा को एक बेटी तथा मॉ के तौर विदा करते हैं, जिससे गंगा घाटों का संम्बन्ध एक मॉ के साथ बेटी का भी है। लेकिन इतना भावनात्मक व जीवन्त रिश्ता होंनें के बावजूद भी गंगा अपनें मायके से ही मैली होती जा रही है। मुखवा और धरालीं में भी कचरा सीधे नदी में डाला जा रहा है। यहॉ शौेचालय भी गंगातट पर बनाया गया है। गंगोत्री से लेकर चिन्यालीसौड तक के 135 किमी0 के सफर में गंगा किनारे बसे सभी शहर और कस्बों का कचरा सीधे गंगा में डाल दिया जाता है।
ये अच्छी बात है, कि सरकार नें कुछ प्रयास किये हैं, गंगोत्री-यमुनोत्री के लिए जिला प्रशासन नें रिसाकिल कंपनी के साथ-साथ पॉच साल का अनुबंध कर दिया है। इस अनुबंध के तहत गंगोत्री यात्रा मार्ग पर गंगनानी से गंगोत्री धाम तक और दोबाटा से यमुनोत्री धाम तक प्लास्टिक मुक्त बनानें का लक्ष्य रखा गया है। पिछले दिनों जिला प्रशासन द्वारा केदारधाम के प्रमुख शहर-कस्बों में स्वच्छता व प्लास्टिक मुक्त जागरूकता रैली का आयोजन किया गया था । वहीं सडक निर्माण में काटे जानें वाले वृक्षों की संख्या लाखों में है, निश्चित ही पर्यावरण और यहॉ की नैसर्गिक छटा को आघात पहॅुचेगा । यहॉ पर्यावरण कार्यकर्ता श्रीमती शान्ति ठाकुर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर इसे रोकनें की मॉग की है।
उत्तराखण्ड जैसे पहाडी राज्य के लिए चार धाम और दूसरी धार्मिक यात्राऐं कारोबार और रोजगार बढानें में अहम भूमिका निभा सकती है। पर्वतीय राज्य में वैसे कृषि उत्पादन की हालात वैसे ही ना के बराबर है।
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