“गर्भ की पुकार”

मार क्यों रही हो माँ यहाँ बुलाके,
मारो न माँ मुझे बुलाके ।

मैं चाहती हूँ कि दुनिया देखूँ,
पढ़ना- लिखना मैं भी सीखूँ ।

दोष क्या आँखिर माँ मेरा,
मन क्यों बदल गया माँ तेरा ।

विचार ये तेरे मन में कैसे आया,
कहाँ गई तेरी ममता माया ।

तेरे गर्भ में पल रही हूँ,
कल्पतना दुनिया की कर रही हूँ ।

हे माँ मुझे भी अपना ले,
बेटा समझकर तू अपना ले ।


नाम रोशन तेरा करूंगी,
तेरे लिए जग से न डरुंगी ।

बेटा-बेटी का अन्तर त्याग दे,
मुझको भी जग में बुला दे ।

मुझे न गिराना माँ,
अस्पताल न जाना माँ ।

मैं भी जग में आऊंगी,
तेरे आँगन में छाऊंगी ।

तू क्यों भूल रही है माँ,
लड़की तो तू भी है माँ ।

बेटे से अच्छा काम करूंगी,
तेरे घर का नाम करुंगी ।

सुनना न माँ तू जग की,
सुन ले विनती अपनी बेटी की ।

समझा माँ तू सबको,
बुला ले माँ तू मुझको ।

अतिथि हूँ तेरे में गर्भ की,
तू रक्षा कर माँ मेरे जीवन की ।

भ्रूण हत्या अगर करेंगे सब,
बहू कहाँ से लाएंगे तब ।

चिराग न जल पाएगा तब,
अन्त हो जाएगा जीवन सब ।

माँ मैं तेरी गोद में खेलना चाहती,
दुनिया में मैं आना चाहती ।

नाम सोच लेना माँ मेरा,
अंश पूरा मुझसे बस तेरा ।

माँ मुझे न ठुकराना,
मुझे देखकर तू मुस्कुराना ।

माँ एक बार तू सोच ले,
इस दुनिया को तू रोक ले ।

माँ मैं जग में आऊंगी,
तेरा साथ पूरा निभाऊंगी ।

माँ मुझे जरुर बुलाना,
अपने आँचल में मुझे भी सुलाना ।

पुलिस कार्यालय पिथौरागढ़ में तैनात महिला आरक्षी मंजू जीना

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