पलायन पर आधरित गढ़वाली फिल्म “मेरू गौव” में रमेश ठंगरियाल जी का अहम किरदार किया हैं।
वह पहले भी कई गढ़वाली फिल्मों अभिनय कर चुके हैं। मूलरूप से पौड़ी जनपद के ढांगू पट्टी के ठांगरगांव के निवासी हैं। और वर्तमान में 35 सालो से दिल्ली मंगोलपुरी में रहते हैं। और हमेशा अपनी बोली भाषा और ठेठ पहाड़ी वेशभूषा में ही नजर आते हैं। उन्होंने अपने बेहतर अभिनय से वर्तमान में सफल गढ़वाली फिल्म मेरू गांव में पलायन को लेकर उत्तराखंड के लोक वाद्य यंत्र ढोल दमाऊं बजाने वालों ढोल वादन कलाकारों की आजीविका संकट में हैं
। फिल्म में अभिनय दृश्य को दर्शको को आकर्षित किया है। जिसमें उन्होंने गेंदादास की भूमिका अदा की हैं। देवभूमि में किसी के भी घर पर कोई भी शुभ कार्य हो वह पारंपारिक ढोल- दमाऊं से प्रारंभ से होता हैं। लेकिन आज के परिवेश में उत्तराखंड में ढोल वाद्य यंत्रों की कला संस्कृति लुप्त होने के कगार पर हैं।
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पहले महानगरों में रहने वाले उत्तराखंड मूल के प्रवासी लोग भी शादी- विवाह,चूड़ा कर्म आदि मांगलिक अवसरों पर गांव से अपने पारंपारिक वाद्य यंत्र ढोल दमाऊं और उन्हें बजाने वाले (औजी और कुल पुरोहित (पंडित) जी को गांव से विशेष आमंत्